बुलंदशहर जिले में एक बार फिर स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और पारदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं। हाल ही में जहांगीराबाद कस्बे के सुरभि अल्ट्रासाउंड सेंटर पर गलत रिपोर्ट देने का गंभीर आरोप सामने आया है, जिसने न केवल स्थानीय निवासियों को आक्रोशित किया है, बल्कि पूरे जिले में चल रहे अवैध अल्ट्रासाउंड सेंटरों के जाल को भी उजागर कर दिया है। यह मामला न केवल स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही को दर्शाता है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि क्या मानव जीवन की कीमत अब केवल पैसे के आगे रह गई है?
क्या है पूरा मामला?
स्थानीय निवासी जगदीश गुप्ता की अल्ट्रासाउंड जांच में हुई गंभीर चूक ने इस पूरे प्रकरण को सामने लाया। जगदीश की अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में उनके गुर्दे में गांठ होने की जानकारी नहीं दी गई, जिसके कारण उन्हें सही समय पर इलाज नहीं मिल सका। जब उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ, तो उन्होंने बुलंदशहर के एक अन्य अल्ट्रासाउंड सेंटर पर जांच करवाई, जहां गुर्दे में गांठ की पुष्टि हुई। इस लापरवाही से आक्रोशित परिजनों ने सुरभि अल्ट्रासाउंड सेंटर पर हंगामा किया और सेंटर के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए।
परिजनों का कहना है कि सेंटर पर जिस डॉक्टर के नाम पर रजिस्ट्रेशन है, वह स्वयं अल्ट्रासाउंड नहीं करता। बल्कि, टेक्नीशियन द्वारा अल्ट्रासाउंड किया जाता है, और स्टाफ फर्जी हस्ताक्षर के साथ रिपोर्ट तैयार कर देता है। यह पहली बार नहीं है जब सुरभि अल्ट्रासाउंड सेंटर विवादों में आया हो। सूत्रों के अनुसार, इस सेंटर पर पहले भी कार्रवाई हो चुकी है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की निष्क्रियता के कारण यह फिर से संचालित हो रहा है।
टेक्नीशियनों के सहारे चल रहे अल्ट्रासाउंड सेंटर
सूत्रों के हवाले से पता चला है कि बुलंदशहर जिले में आधे से अधिक अल्ट्रासाउंड सेंटर टेक्नीशियनों के सहारे चल रहे हैं। ये सेंटर एमबीबीएस डिग्री धारक डॉक्टरों के नाम पर रजिस्टर्ड हैं, लेकिन वास्तव में जांच और रिपोर्टिंग का काम अयोग्य टेक्नीशियन करते हैं। गलत रिपोर्ट्स के कारण मरीजों को सही इलाज नहीं मिल पाता, जिसके परिणामस्वरूप कई लोग गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं, और कुछ तो काल के गाल में समा चुके हैं।
यह भी आरोप है कि इन अवैध सेंटरों से स्वास्थ्य विभाग को हर साल 1 से 2 लाख रुपये का चढ़ावा चढ़ाया जाता है, जिसके कारण विभाग जानबूझकर कोई कार्रवाई नहीं करता। यह भ्रष्टाचार का एक ऐसा मकड़जाल है, जिसमें मरीजों की जान दांव पर लग रही है।
स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी
सबसे चिंताजनक बात यह है कि स्वास्थ्य विभाग को इस अवैध गतिविधि की पूरी जानकारी होने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा। सवाल यह है कि क्या मानव जीवन की कीमत अब केवल पैसे के आगे रह गई है? सुरभि अल्ट्रासाउंड सेंटर जैसे मामले बार-बार सामने आने के बावजूद, स्वास्थ्य विभाग की निष्क्रियता संदेह पैदा करती है। क्या यह भ्रष्टाचार का हिस्सा है, या फिर लापरवाही का नतीजा? दोनों ही स्थितियों में, आम जनता की जान खतरे में है।
मरीजों पर पड़ रहा असर
गलत अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट्स के कारण मरीजों को न केवल शारीरिक और मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि आर्थिक नुकसान भी हो रहा है। जगदीश गुप्ता जैसे कई मरीजों को गलत रिपोर्ट के कारण बार-बार जांच करवानी पड़ती है, जिससे उनका समय और पैसा दोनों बर्बाद होता है। इसके अलावा, गंभीर बीमारियों का समय पर पता न चलने से मरीजों की जान तक जा सकती है।
क्या है समाधान?
इस गंभीर समस्या का समाधान तभी संभव है, जब स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन इस मकड़जाल को तोड़ने के लिए सख्त कदम उठाए। कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:
- सख्त जांच और कार्रवाई: सभी अल्ट्रासाउंड सेंटरों की नियमित जांच होनी चाहिए। टेक्नीशियनों द्वारा अल्ट्रासाउंड करने वाले सेंटरों का लाइसेंस रद्द किया जाए।
- पारदर्शिता: सेंटरों में कार्यरत डॉक्टरों और टेक्नीशियनों की जानकारी सार्वजनिक होनी चाहिए, ताकि मरीजों को सही जानकारी मिल सके।
- जागरूकता अभियान: आम जनता को शिक्षित करने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाएं, ताकि वे केवल अधिकृत सेंटरों पर ही जांच करवाएं।
- भ्रष्टाचार पर रोक: स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कड़े नियम लागू किए जाएं और दोषियों को सजा दी जाए।
निष्कर्ष
बुलंदशहर में अवैध अल्ट्रासाउंड सेंटरों का यह मकड़जाल न केवल स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता को धूमिल कर रहा है, बल्कि मरीजों की जान के साथ भी खिलवाड़ कर रहा है। सुरभi अल्ट्रासाउंड सेंटर का ताजा मामला इस समस्या की गंभीरता को दर्शाता है। अब समय है कि स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन जागे और इस भ्रष्टाचार के जाल को तोड़े। अन्यथा, न जाने कितने और जगदीश गुप्ता इस लापरवाही का शिकार बनेंगे।
आपके विचार क्या हैं? क्या आप भी इस तरह की लापरवाही का सामना कर चुके हैं? अपनी राय कमेंट में साझा करें और इस ब्लॉग को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं, ताकि जागरूकता फैले और बदलाव आए।
स्रोत: स्थानीय सूत्र और जनसामान्य से प्राप्त जानकारी
नोट: यह ब्लॉग जनहित में लिखा गया है और इसका उद्देश्य जागरूकता फैलाना है।










