बरेली जिले के भुता ब्लॉक में सरकारी स्कूलों को बंद करने और एक में मर्ज करने की नीति के खिलाफ अब ग्रामीण जनता का गुस्सा खुलकर सामने आने लगा है। आम आदमी पार्टी के स्कूल बचाओ अभियान की अगुवाई कर रहीं रोहिलखंड उपाध्यक्ष एवं सामाजिक कार्यकर्ता एडवोकेट सुनीता गंगवार ने अब भुता ब्लॉक के गांवों का दौरा शुरू कर दिया है। उन्होंने 9 जुलाई को ग्राम करेमगंज और हिम्मतपुर पहुंचकर बच्चों और अभिभावकों से मुलाकात की।
यहां भी वही कहानी सामने आई — बच्चों को पढ़ाई के लिए अब कई किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा है, अभिभावकों को अपने बच्चों की सुरक्षा की चिंता सता रही है, और सबसे बड़ी बात — बच्चों का भविष्य अधर में लटकता नजर आ रहा है।
गांव-गांव जाकर पीड़ा सुन रहीं सुनीता गंगवार
सुनीता गंगवार ने गांव करेमगंज में जन संवाद करते हुए कहा:
“शिक्षा एक अधिकार है, न कि एक सुविधा जिसे सरकार बंद कर दे। यह सरकार शिक्षा के विस्तार की नहीं, बल्कि शिक्षा को खत्म करने की दिशा में काम कर रही है।”
बच्चों ने कहा कि उनका स्कूल बंद हो चुका है, और अब उन्हें 5 से 6 किलोमीटर दूर के स्कूल में जाना पड़ता है। बारिश, गर्मी और खराब रास्तों में यह सफर एक बच्चे के लिए कितना मुश्किल होता है, यह किसी को समझ नहीं आता।
“हमारे बच्चों का भविष्य खतरे में है” – ग्रामीणों की पीड़ा
ग्राम हिम्मतपुर में एक माता-पिता ने कहा:
“हम खेतों में काम करते हैं। बच्चों को इतनी दूर भेजना हमारे लिए खतरे से खाली नहीं है। अगर स्कूल बंद कर दिए जाएंगे, तो फिर गरीब के बच्चे कैसे पढ़ेंगे?”
बच्चों ने भी अपनी चिंता साझा करते हुए कहा कि स्कूल दूर होने से वे थक जाते हैं और पढ़ाई में ध्यान नहीं दे पाते। कई बच्चों ने स्कूल जाना ही छोड़ दिया है।
सरकारी नीति या शिक्षा से सौतेला व्यवहार?
सुनीता गंगवार ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह नीति गरीब और ग्रामीण बच्चों को शिक्षा से वंचित करने की साजिश है। उन्होंने कहा:
“यह पहली सरकार है, जो कहती तो है ‘सब पढ़ें, सब बढ़ें’, लेकिन जमीन पर हकीकत कुछ और ही है। स्कूल बंद करना सीधे तौर पर शिक्षा को रोकने की कोशिश है।”
स्कूल बचाओ अभियान को मिल रहा ग्रामीणों का समर्थन
स्कूल बचाओ अभियान अब एक जन आंदोलन बनता जा रहा है। सुनीता गंगवार ने ग्रामीणों से अपील की कि वे एकजुट होकर अपनी आवाज़ उठाएं ताकि सरकार को अपनी नीति पर पुनर्विचार करने को मजबूर होना पड़े।
भुता में शिक्षा की ज़मीनी हकीकत
भुता ब्लॉक में पहले से ही कई स्कूल ऐसे हैं जहां शिक्षकों की कमी, बैठने की उचित व्यवस्था न होना, और संसाधनों की घोर कमी है। अब स्कूलों को मर्ज या बंद करने की नीति ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी है। जिन बच्चों के पास निजी स्कूलों में पढ़ने का साधन नहीं है, वे पूरी तरह से शिक्षा से कटते जा रहे हैं।
समाधान क्या हो सकता है?
इस विकट स्थिति से निपटने के लिए कुछ अहम कदम लिए जा सकते हैं:
- स्कूल बंद करने की नीति पर तत्काल रोक
- ग्रामीण स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति और संसाधनों की उपलब्धता
- ग्रामीणों को शिक्षित करने और उन्हें आवाज उठाने के लिए प्रेरित करना
- यदि मर्ज जरूरी हो तो बच्चों के लिए सुरक्षित और मुफ्त परिवहन की व्यवस्था
- प्रशासन के साथ खुले संवाद और जन सुनवाई की शुरुआत
निष्कर्ष: क्या सरकार सुन रही है?
सुनीता गंगवार की यह पहल सिर्फ एक अभियान नहीं, बल्कि ग्रामीण बच्चों के अधिकार की लड़ाई है। यह समय की मांग है कि सरकार स्कूल बंद करने के फैसले पर दोबारा विचार करे और शिक्षा को प्राथमिकता दे।
क्या यह नीति शिक्षा को खत्म करने का रास्ता है? या फिर यह समय है एक नई क्रांति का, जहां गांव-गांव से आवाज़ उठेगी —
“हमारे बच्चों को शिक्षा चाहिए, स्कूल नहीं बंद होने चाहिए!”
👉 आपका क्या मानना है? क्या स्कूल बंद करना सही है? अपनी राय नीचे कमेंट करें। इस ब्लॉग को शेयर करें और इस मुहिम में शामिल होकर बच्चों के भविष्य को बचाएं।
📌 स्रोत: स्थानीय ग्रामीण, सुनीता गंगवार का बयान, और समाचार रिपोर्ट्स










